Tuesday, February 21, 2012

एक 'बकैत' की 'अटरिया'

बकैत, रोहित
सोशल नेटवर्क के तार पर हाथ रखिए, सा रे गा मा.. बज उठेगा, अरे आप चौंक गए। आपको तो बहस की तलब लगी थी लेकिन आपका कथावाचक तो संगीत की बात करने लगा है। वह तो तानपुरा निकालने की जिद करने लगा है।

दरअसल फेसबुक और ट्विटर के अटरिया पर लगातार डेरा डालने की वजह से कथावाचक को अपने मन-राग का आलाप करने का भरपूर मौका मिलता रहा है। ऐसे में ही उसकी मुलाकात एक 'बकैत' से हो जाती है। एक ऐसा बकैत जिसे गुलजार प्रिय हैं, जो गीतों में डूबा रहता है, जिसे शास्त्रीय संगीत से राग है, जिसे विज्ञापनों के शब्दों व वीडियो से प्रेम है। यह बकैत टि्वटर की अटरिया पर खूब चहलकदमी करता है। वह बकैत है अपना रोहित

उसे पढ़कर लगता है कि मानो उसका मानस संगीत से बना है और जिसे सिंचने का काम खुद गुलजार ने किया हो। तो बात यह है कि कथावाचक से रोहित की सीधी मुलाकात नहीं है, बस ट्विटिया मुलाकात है। ठीक वैसे ही जैसे एयरटेल के विज्ञापन में कोरस में चलता है- "हर एक फ्रैंड जरुरी होता है..." हम ट्विट से बतकही करते हैं, ठीक वैसे ही जैसे चौक पर कोई बकैती करता है।

इस बकैती में रस है क्योंकि रोहित के बकैत में संगीत रचा बसा है। ठैठ लखनवी अंदाज में जहां उसकी अवधी बोली खींचती है वहीं संगीत के लिए दिया गया उसका लिंक और १४० शब्दों की बकैती हमारे अंतर्मन को शांति देती है। हम वाह-वाह करने लगते हैं। उसके ट्विट में कथावाचक को सूफी प्यार झलकता है तो ऐसे में उसने #sufi नामक एक ट्रेंड की ही शुरुआत कर दी, खास अपने बकैत के लिए।

जब भी उसकी बकैती को पढ़ना होता है, मन में अमीर खुसरो बजने लगते हैं- "अबके बहार चुनर मोरी रंग दे, पिया रखले लाज हमारी, निजाम..।" संयोग देखिए जब कथावाचक को अमीर खुसरो याद आते हैं, ठीक उसी वक्त बकैत रोहित हमें कुमार गंधर्व की आवाज में माया महाठगनी सुनाने लगता है, ऐसे में महसूस होता है कि यह बकैत किसी रंग में कोई दूसरा रंग डाल रहा है, शायद वह भी रंगरेज से बात करना चाहता है।

साहेबान, बकैत की स्मृति की पोथी काफी मोटी है शायद, वह यादों की खेती करता है शायद। शायद इसी वजह से उसके जेहन में संगीत के कई रुप में हैं, वह विज्ञापनों के पुराने दौर में ले जाता है। हमें मोटरसाइकिल कंपनियों के प्रचार के लिए बनाए गए जिंगल के करीब लाता है, हम हुरि बाबा कहने लगते हैं, बजाज मोटरसाइकिल के लिए।

दरअसल स्मृतियों का जीवन में जो महत्व है, शायद वही असली संगीत है, असली रियाज और शुद्ध आलाप है। औऱ इन्हीं बातों को लेकर वह झीनी झीनी चदरिया ट्विटर पर बून रहा है। देखिए न, कथावचक को कबीर याद आने लगे हैं- काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया...

कथावाचक को कुछ इन्हीं वजहों से यह बकैत खींचता है। और जब नजर उसके टि्वट परिचय पर जाता है तो और भी रस मिलता है, जहां वे अपने बारे में लिखते हैं- "Sa Re Ga Ma' Pa Dha Ni Sa. Sa. Ni Dha Pa Ma' Ga Re Sa. A servant to Gulzar sahab and Music (in that very order) बकैत " अपना बकैत ब्लॉग भी लिखता है, वह भी संगीत में डूबा, वक्त हो तो देखिएगा, पता है-Almost a review per post…Almost!

अब देखिए न यह पोस्ट तैयार करते वक्त कबीर सबसे अधिक याद आ रहे हैं, उनसे बकैती करने का जी करने लगा है। ऐसे में यूट्यूब से बेहतर कौन है, कथावाचक कबीर भजन सुनना चाहता है, क्या आप भी सुनेंगे, शायद मेरे बकैत रोहित भी यही चाहेंगे.. "दास कबीर जतन करि ओढी, ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया "

4 comments:

कमल कुमार सिंह (नारद ) said...

आपकी यह रचना कल के चर्चामंच पे लगाई गयी है .

सादर
कमल

नीरज गोस्वामी said...

दरअसल स्मृतियों का जीवन में जो महत्व है, शायद वही असली संगीत है, असली रियाज और शुद्ध आलाप है।

बहुत गहरी बात कर गए हैं आप बंधू...वाह...

नीरज

लोकेन्द्र सिंह said...

यह बकैती पढ़कर मजा आ गया।

deepakkibaten said...

शुक्रिया गिरीन्द्र भाई! इस शानदार बकैत और एक संगीत प्रेमी से परिचित कराने के लिए।